शनिवार, 8 जुलाई 2023

संगठन में रचनात्मक कार्य नही सिर्फ नाम का

 दोस्तो, मैं काफी सालो बाद फिर से अपने इस ब्लॉग पर आया हूँ या कह ले इसे खोज निकाला हु। तो आइए आज कुछ बिचार विमर्श हो जाये।

दोस्तो, एवं गुरुजनों आप सभी का एक बार फिर से अभिनंदन करते हुए आज मैं समाज के संगठनों के बारे में कुछ लिखना चाहूंगा, अक्सर मैंने देखा है कि लोग संगठन बनाते समय काफी एक्टिव और दुरुस्त लगते हैं जैसे कि उनमें अपने समाज के लोगो की सारी तकलीफ़ और परेशानी को कुछ ही दिन में दूर कर देंगे..! पर होता वही है एक ढाक के तीन पात...!मुझे लगता है कि मेरे जैसे सोचने वालो की संख्या मेरे अनुमान से कही ज्यादा होगी।

कारण यह है कि जब भी मैं किसी संगठन की ग्रुप में देखता हूँ तो मुझे दोषारोपण और इल्ज़ाम के लंबी फेहरिस्त नज़र आती है और कुछ दिन काम के बाद संगठन के लीडर और सदस्यगण का जोश ठंडा पर जाता है,यह बात आप सभी को भी पता है, हम सभी ने कई बार कारण खोजने की प्रयास भी किये होंगे पर नतीजा? मुझे लगता है कि कुछ भी नहीं! धीरे धीरे संगठन की आवाज़ दबने लगती है फिर कही लुप्त हो जाती है, हा यदा कदा किसी समारोह के उपलक्ष्य में बरसाती मेढकों की तरह  टर्र टर्र की आवाजें जरूर आती है, पर हक़ीक़त में इसका कोई दूरगामी प्रभाव नही देखा जाता है, हा यह हो सकता है कि देश मे कुछ जगह संगठन अच्छी और रचनात्मक कार्य भी कर रहे हो, पर दोस्तो फ़िलहाल तो इसकी जानकारी मुझे तो नहीं है आप लोगो को अगर है तो कृपया जरूर बताएं। तो आइए थोड़ा हम लोग थोड़ा सकरात्मक हो कर संगठन के बारे में विमर्श करे।


 कैसे लोग हो संगठन में


संगठन सही से नही चलने के पचासों कारण हो सकते हैं, इसकी जानकारी मुझसे ज्यादा आप सभी को होगी, लेकिन कोई संगठन को ब्यवस्तित ढंग से चलाने के लिए मुझे लगता है कि पूरी तरह समर्पण सहित और अहंकार रहित ब्यक्ति की जरूरत होती है जो अपनो के छोटी छोटी हमलो से आहत हुए बिना साथ ही बिना प्रसिद्धि पाने की आकांक्षा लिए जो अपने समाज के लिए कार्य करे।

दोस्तो, मेरा मानना है कि संगठन बड़ा हो या छोटा, उत्तरदायित्व छोटी हो या बड़ी हर स्थिति में सही इंसान का होना ज्यादा मायने रखता अब इस मानदंड में अगर कोई इंसान काम करे तो समाज की उत्थान हो सकती है।

तो आइए हम सभी थोड़ी इसकी समीक्षा और विमर्श करे।

 

प्रभावशाली लोग


दोस्तो, मुझे लगता है कि समाज में प्रभावशाली लोग हमेशा ही कई मामलों में बेहतर सकते हैं हालांकि यह कतई जरूरी नहीं हैं फिर भी जिनकी अपनी समाज और मोहल्ले में अच्छी पहचान के साथ साथ अगर अच्छी शाख भी हो तो ऐसे लोगो के कई काम उनके कहने मात्र से ही हो जाते हैं, लेकिन अक्सर देखा गया है कि ऐसे लोग दो धारी तलवार की तरह होते हैं, जिससे संगठन को फायदे के साथ साथ कई बार नुकसान भी उठाना पड़ता है।

पर फ़िर भी मुझे लगता है कि अगर प्रभाव शाली लोग संगठन के शर्तो में आने और काम करने के लिए तैयार हो तो उसे प्राथमिकता जरूर देनी चाहिए ..कहावत है न कि मरा हुआ हांथी भी सवा लाख होता है।


शैक्षणिक योग्यता


दोस्तो यह तो आप सभी जरूर मानते होंगे कि आज के इस युग में अगर संगठन के लीडर पढ़े लिखे हो तो कई काम वो अपनी उस योग्यता के दम पर ही कर या करवा सकता है। साथ ही सरकारी निर्देश और जानकारी को समझने के लिए चुनौती भी नही रहती,आज के इस कंप्यूटर युग में शायद ही कोई सरकारी या गैर सरकारी संस्था हो जहा लोगो को ब्यक्तिगत रूप से पहुँचना अनिवार्य होता है (सिवाय कुछ कामो को छोड़ कर)। अगर लीडर पढ़ा लिखा और तजुर्बेदार है तो संगठन की बहुत सारी काम वो बैठे बैठे कर सकता है या करवा सकता है। इसके अलावा किसी भी महत्वपूर्ण स्थान जैसे हॉस्पिटल,थाना, डी एम आफिस, और नेताओं से अपने और अपने लोगो के लिए अधिकार मांगना या अधिकार के लिए लड़ना आसान हो जाता है।


बहिर्मुखी और सेवा भाव मे सहज और स्वाभाविक दिलचस्पी


दोस्तो मुझे लगता है कि संगठन के अच्छा लीडर में यह एक  महत्वपूर्ण पॉइंट है,अंतर्मुखी लोग अपनी और संगठन के दूसरे लोगो की समस्या को सहज भाव से अभिब्यक्त नही कर पाते जो कि सबसे महत्वपूर्ण गुण है। लीडर अगर बहिर्मुखी हो तो अपनी इच्छा, ज्ञान, संबाद को बेहतर ढंग से अभिब्यक्त कर पाता है जिसका सीधा फायदा अपने संगठन पर पड़ता है।


सौ बात की एक बात


दोस्तो ऊपर दिए हुए गुण रहते हुए भी सब कुछ बेकार हो सकता है मतलब ये सभी गुण किसी काम के नही अगर बंदे में अहंकार या ईगो हो..! 

मुझे लगता है कि यही एक ऐसा अवगुण है जो सारी खूबियां को मटियामेट कर देता है। मुझे लगता है कि इस बात आप सभी सहमत भी होंगे, क्योंकि आज लगभग हर संगठन में ईगो और अहंकार की लड़ाई चल रही है कही खुल्लमखुल्ला तो कही दवे दवे होशियारी से, दोस्तो आज हर कोई खुद को दूसरे से बेहतर समझता है, कोई किसी से इस मामले में समझौता नही करना चाहता और मेरी जानकारी में संगठन का न चलने के पीछे सबसे बड़ा वज़ह यही है।

लेकिन मैंने यह कोई नायाब बात नही कही यह बात हर किसी को मालूम है ..! तो फ़िर क्या..?

आज शायद हम सभी मे भारतीय संस्कार की जरूरत को बेहतर समझ सकते हैं, और यह भी की हमारे बुजुर्ग संस्कार की मापदंड को इतना महत्व क्यों देते थे हमारी सारी धार्मिक ग्रंथ (गीता, रामायण इत्यादि)5000 सालो से इस संस्कार की गुणवक्ता को समझा रहे हैं जो कि अब धीरे धीरे अपनी उपस्थिति के लिए संघर्ष कर रहा है। 

दोस्तो मैं यह लिख कर स्वयं को मुक्त करने के उपाधि नही लेना चाह रहा हूँ पर आज के यह एक गंभीर मुद्दा जरूर है जिसके बारे में हम सभी को गंभीरता से सोचना होगा।





बुधवार, 9 मई 2012

खुला आकाश,प्यासा कुआँ

   

 

प्यासा कुआँ 

प्रकृति की एक कहानी, जो है सालों पुरानी.
प्यास बुझाता था एक कुआँ, न प्यास कभी उसने जानी थी.

जो भी लाया अपनी बाल्टी, बदले में पूरा जल भर देती थी.
प्यासे की प्यास बुझाता, खुशहाली का पर्याय था वह.
बचपन की उन यादों को, सबको आज सुनाता हूँ. 

जैसे गई जलसतह नीचे, पानी वैसे हुआ ख़त्म.
प्यास बुझाने को प्यासा, वह कुआँ हो चला ख़तम.

इंतज़ार किया महीनो सालो, उसमे अब न  पानी था.
प्रकृति ने किया ऐसा कहर, हैंडपंप भी उसे ना चिढ़ा पाती.

उसकी सिसकी किसी ने  जानी, जीवन ठहर जाता है तब.
प्यास बुझाता था एक कुआँ, अब गहरा कूड़ादान है वह.
                                                             -आकाश गुप्ता   (श्री आकाश जी फिलहाल फ़िलहाल   ISRO.( Indian Space Research Organisation), में  Sr.Assistant (Administration) in कार्यरत है।)

 

 

 

 

 

 

 

 

यह कविता मेरे मित्र आकाश (जिनसे फसबूक में बात चीत हुई है ) उन्होंने भेजी है, यह कविता उनके छोटे भाई श्री विकाश गुप्ता द्वारा लिखी हुई है  श्री आकाश जी फिलहाल फ़िलहाल   ISRO.( Indian Space Research Organisation), में  Sr.Assistant (Administration) in कार्यरत है।



विकाश गुप्ता

 खुला आकाश

जीत का जश्न है, जिन्दगी में वो मुकाम आया है.

चाहते पड़  गई हैं कम, और चेहरे पर मुस्कान छाया है.

ना आगे कोई मंजिलें हैं, ना रास्तों का है पता.

नज़रों के सामने बस, एक गुबार का साया है.

अगर जद है दिल के झरोखों में,  है तुझे नयें रास्तो की तलाश.

सच्ची कोशिशो ही करती है, हर मुश्किल आसान.

चाहत की कोई इन्तहां नहीं होती.

हासिल करने की जिद नहीं पड़ती कभी छोटी.

ऐ दिल तू भी ये बात समझ ले.

एक मंजील से पूरी दुनिया नहीं चलती.


करना है आगाज तुझे, है चट्टानों का साथ तुझे.


हरा भरा और रोशन कर दे, वो चाहते हैं जो बुझे बुझे.


अपनी चाहत अगर पंख हैं तेरे, गैरों की चाहत है परबाज.


उड़ चल तू इस नील गगन में, सारा जग तेरा आकाश.

                                                                                     -श्री विकाश गुप्ता 

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

धार्मिक स्थलों में स्वार्थी तत्व

तारकेश्वर मंदिर 
बाबा तारकनाथ 
आज (१६ अप्रैल )मै अपने सपरिवार तारकेश्वर मंदिर गया था जो कि पच्छिम बंगाल के हूगली जिले में स्तिथ है, आज छोटे भाई के लड़का एवं लड़की दोनों का मुंडन करवाना था यह मुझे बताने की जरुरत नहीं की  यह हुन्दुओ का एक बहुत ही पवित्र स्थल है।
नाइ के पास बाल कटवाना (तारकेश्वर)
यह मंदिर काफी पुरानी होने के कारण इनका इतिहास में अपना एक स्थान है, चुकि मेरा सपरिवार तारकेश्वर जाना बिलकुल एक व्यक्तिगत बात है, आप भी सोच रहे होंगे इसे ब्लॉग में लिखने जैसी कोई बात नहीं लेकिन मेरा लिखने की वजह साफ़ है, मै धर्म से एक हिन्दू हु, मुझे भी अपनी जाति तथा धर्म में गर्व है, पर कुछ बात तो मुझे लगाती है की लोगो को पता होगा, आज भी चंद लोगो की व्यक्तिगत  स्वार्थ वजह से हिन्दू धर्म बदनाम हो रही है ये लोग धर्म और आस्था का मुखौटा ओड़, और उनके नाम पर  यात्रीगन को लूटते है, और  इनकी वजह से  कुछ  लोग हिन्दू धार्मिक स्थल पर जाना पसंद नहीं करते, ऐसा मेरा मानना है। वहा पर सिर्फ मेरा परिवार ही नहीं था, वल्कि काफी लोग थे जो मुंडन करने आये थे उनलोगों में {बाल काटने वाले नाइ ) और यात्री में बिवाद हो रही थी, मुझे तो लगता है की जो लोग गरीब है उन्हें तारकेश्वर जैसी जगह जाने की हिम्मत ही नहीं उठा पाते होंगे इन नकली पोंगा पंडित और चंद दलालों की वजह से ।
सपरिवार पूजा देने के लिए (तारकेश्वर)
मंदिर की अपनी एक संस्था है और सभी क्रियाकलापों की सभी रेट (मसलन बाल कटना,पूजा देना भोग लगाना, इत्यादि चीजो) तय की गई है, फिर भी उनलोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता, उन्हें तो किसी भी तरह से आये हुए लोगो से रूपए ऐंठना होता है। ऐसे लोगो की वजह से कई लोगो को परेशानी की सामना करना पड़ता है, पर उनको इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
मेरा एक बहुत ही करीबी मित्र श्री जित्तेंद्र गुप्ता जी जो की वहा (स्टेशन में) बुकिंग कलर्क है और लोगो को टिकिट देते है, जब मैंने ये बात उन्हें बताई तो उन्होंने कहा की आप तो फिरभी बच गए कुछ लोग तो पूरी तरह से उन्हें लूट लेते है और टिकिट खरीदने की पैसा उनके पास नहीं होती, तो कई बार वो अपनी जेब से दे देते है और कई बार यात्रिओ को बिना टिकिट ही घर जाना पड़ता है ।
मेरा यह ब्लॉग लिखने का उद्देश्य किसी तीर्थस्थल की बुराई बताना नहीं है अपितु कुछ भ्रष्ट व्यक्तियों के कारण हमारी (हिन्दू धर्म की) जो छबी खराब हो रही है उन्हें दर्शाना है ।
एक भला दूकानदार
इन सब के अलावा मुझे चंद लोग एसे भी मिले जो जरुरत पड़ने पड़ मेरे परिवार की काफी मदद की वो भी बिना कुछ उम्मीद किये मै उनका काफी आभारी रहूँगा। उनलोगों में से एक की मै फोटो प्रकाशित कर रहा हु जो की एक दुकानदार है। 
मुझे लगता है की आज भी चंद लोगो की व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि की वजह से हिन्दू धर्म की बदनामी हो रही है, इसे भी हमें पहल करनी चाहिए। 
और यह समस्या सिर्फ बंगाल की नहीं अपितु पुरे भारत देश की है, मै देश की सारी मंदिरों की बात नहीं कर रहा हु, लेकिन जो मंदिर जीतनी पुरानी
और प्रसिद्ध है लगभग सभी जगहों का एक सा आलम है, पोंगी पंडितो की कमी नहीं है ये लोग भगवान को ज्यादा से ज्यादा रूपए की भोग लगाने की बात करते है और कई बार तो कुछ लोग मेरी तरह बिना भोग लगाये हुए भी आजाते है, जैसे कि ज्यादा पैसे से भोग लगाने से भगवान् ज्यादा सुनता हो या भक्तो को मोक्ष जल्दी मिलता हो...। 
इन सबो के अलावा एक और बात मैंने देखी हमारी बनिया समाज दान पुण्य में काफी विश्वाश रखते है, और अपनी धर्म को अच्छी तरह से निभाते भी है मैंने ऐसे कई पत्थर मंदिरों कि दीवारों में लगे हुए देखे जो लगभग १०० साल की है जिसमे हमारी जाति( बनिया) का काफी योगदान रहा है, अथ: ये बात तो तय है हम लोग अपनी धर्म जरुर निभाते है और कुछ पोंगा पंडित जो सायद सुधरने वाले नहीं है उनसे भी लोगो को कोई फर्क नहीं पड़ता  लोग अपनी धर्म जरुर करते है।
मुझे ऐसा लगता है मंदिर परिसर के अन्दर(किसी भी) अगर managment अगर ठीक हो जाए तो धार्मिक यात्री या लोगो में भी वृद्धी होगी और लोग वहा जाना भी पसंद करेंगे।
मेरे इस लेख के बारे में अगर आप अपनी कोई प्रतिक्रिया देना चाहते है तो कृपया जरुर दे मुझे ख़ुशी होगी ।

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

सिर्फ भाषण बाजी से काम नहीं चलेगा....

विनय
आज ठीक तीन महीने हो गए मेरे इस ब्लॉग के मै अपनी ब्लॉग का जन्म दिन तो नहीं मन सकता क्यू की उसके लिए भी साल भर होना जरुरी है। पर इस बहाने मुझे कुछ लिखने का बहाना जरुर मिल गया...। मै एक काम हमेशा करता हु रात को आकर अपने ब्लॉग को एक बार चेक जरुर करता हु ताकि यह समझ में आये आज कितनी पेज देखी गई है और  कहा से, मेरा मतलब है किस देश से और किस पोस्ट को ज्यादा और कितनी बार देखी गई है इससे मुझे पता चलता है की लोग किस पोस्ट को ज्यादा देखा करते है और उनकी जरुरत क्या है ? तीन महीने के दौरान आप लोगो को तो पता ही होगा की ये ब्लॉग कितनी लोगो ने या कितनी बार देखी गई है अभी मैंने एक काउंटर भी ब्लॉग में लगा दिया है जो पेज कितनी बार देखी गई है को दर्शाता है। सबसे अच्छी बात है ये ब्लॉग इंडिया के अलावा तक़रीबन १० से भी ज्यादा देशो से देखा जाता है जिसमे अव्वल नंबर में अमेरिका का आता है और दूसरी नंबर पर राशिया और उसके बाद क्रमश: जर्मिनी,लातिवा,नेपाल, फ्रांस, मोरिसस इत्यादि देशो की नंबर  आती है । स्वाभाविक है कि हमारी कौमे वहा भी रहती है और इस ब्लॉग के मार्फ़त से जुड़ना चाहते है, और हमारे समाज के बारे में जानना चाहते है । 
अगर मै पोस्ट कि बाते करू तो कुछ दिनों पहले तक matrimonial  section ही सबसे ज्यादा देखी जा रही थी पर अभी अचानक "दहेज़ कैसे रोके" जिसे लिखा है प्रांतीय महिला मंच ने पोस्ट को काफी ज्यादा पसंद किया जा रहा है इससे हमारे सामाजिक जरुरत को समझी जा सकती है लोग आज भी कितनी परेशान है, यह वाकई एक जरुरी और ज्वलंत  मुद्दा है, और मुझे लगता है कि सिर्फ भाषण बाजी से काम नहीं चलेगा इसके लिए हमें तुरंत पहल करनी चाहिए। 
मसलन जो लोग बिना दहेज़ कि शादी करते है उन्हें और उनके परिवार के लोगो को  हमें मंच में बुलाकर सम्मानित करनी चाहिए (जैसा कि प्रांतीय महिला मंच ने लिखा है) और जिस परिवार में दहेज़ कि मांग हो उसे सामजिक रूप से बहिस्कार करे, हालाँकि मै यह भी समझता हु कि यह मुद्दा इतनी आसान नहीं है, भले मै ब्लॉग में अच्छी बाते लिखता हु पर मेरे न चाहने (यह बात मैंने बिलकुल सच कही है) पर भी मुझे दहेज़ लेनी पड़ी परिवारिक कारणों से, लोग क्या क्या कहेंगे...लड़का ठीक नहीं है... अपनी बहन,बेटी कि शादी में हमलोगों ने कितनी पैसा बहाया... वगैरह -वगैरह ...। इस सबो के अलावा यह एक चर्चा का भी विषय है, कुछ लोग मानते है कि लड़की वाले अगर अपनी लड़की को अपनी मर्जी से दे रहे है तो क्या आपत्ति है। यह बड़ी जटिल विषय भी है ।
खैर मुझे तो कुछ लिखना था सो लिख दिया, पर जो लोग इस ब्लॉग को पढ़ते है उनके लिए ये ब्लॉग ज्यादा से ज्यादा कैसे उपकारी हो मै इसके बारे में सोचता रहता हु ।
कई फोन मुझे आये, ज्यादातर लोग सिर्फ ये पूछते है आप कौन है इस समाज कि ऑफिस कहा है... वगैरह -वगैरह ...। और कुछ फ़ोन इसलिए भी आते है कि मेरे लड़का या लड़की के लिए कोई बढ़िया सा  सम्बन्ध बताये...।
जब मैंने साईट बनाने की योजना  अपनी जीजा जी ( श्री राम बाबू गुप्ता / पुत्र श्री हरिहर प्रसाद साव टीटागढ़ ) से कही तो उन्होंने पहले ही बता दिया था कि हमारे समाज  में पढ़े लिखो कि संख्या काफी कम है अत: ये उतना कारगार नहीं होगा । और उनकी बात सत प्रतिसत सही निकली । लेकिन मुझे तो अपना कुछ करने का भूत सवार था अत: मैंने हिंदी में ब्लॉग लिखने कि ठानी, और उन्दिनो पेज विजिट काफी कम थी पर जब मैंने फेसबुक में अपना आईडी बनाया तो और इस ब्लॉग के बारे में बताना शुरू किया तो पेज विजिट काफी बढ़ गई, और इसी दौरान एक और बात पता चली की आज के नौयूवक (हलवाई समाज के ) काफी समझदार है और हमारे समाज को बदलने कि क्षमता उनमे पूरी है, और इसका  समय भी आ गया है। हलवाई समाज में बहुत सी ऐसी परिवार है जो हो सकता है कि हमारे समाज से न जुड़े हो पर सामाजिक क्षेत्र में काफी उन्नत अवस्था में है और सच कहू तो लड़किया और ज्यादा प्रखर लगी उनमे सोचने और लिखने की क्षमता कही मुझे ज्यादा दिखी, और उन्हें ये भी पता है अच्छी और बुरी चीजे क्या है, हम माने या ना मने समय के साथ हमें अपनी सोच तो बदलनी ही पड़ेगी। इस नई पीढ़ी का तो जवाब नहीं.....पर हमें उन ( new  generation ) तक पहुचना होगा और उन्हें प्रोत्साहित करना होगा कि वो भी अपनी समाज के लिए कुछ अच्छा  कर सकते है और अपना महत्वपूर्ण समय थोड़ी अपनी समाज के संगठन को भी दे ताकि वो भी हमारी इस मूलधारा में आ सके और अपनी कुछ बात रख सके । मेरी इस रचना को पढ़ कर आप लोग समझ ही गए होंगे कि मै यह बिना तैयारी कि हुई अपनी मर्जी से जो भी समझ  में आया लिख दिया ।
अगर मेरी कोई बात से आप सहमत न हो तो कृपया जरुर लिखिए मेरा ईमेल आई डी और फ़ोन नंबर मेरे ब्लॉग के  " home " में दिया हुआ है ।
और एक जरुरी बात अगर आप को इस ब्लॉग कि जानकारी है तो कृपया आप लोग अधिक से अधिक लोगो तक इसकी जानकारी पहुचाये क्यू कि नेट कि पहुच के बारे में तो आप लोगो को आइडिया होगा ही, पुरे संसार के  लोग घर बैठे या अपनी मोबाइल से हमारी पहल और समाज कि उन्नति कि खबर रख सकता है, और इससे जुड़े फायदे भी मिल सकती है । और हमरा उद्देश्य (ज्यादा से ज्यादा  लोगो को जोड़ने की ) पूरी होगी, अत: फिर से आप सभी लोगो से अनुरोध है कि कोई भी रचना, कोई भी कार्यकर्म अपने फोटो के साथ भेजे ताकि मै  पोस्ट कर सकू ।
आप सभी को धन्यबाद । 
विनय कुमार हलवाई 

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

पतंग( कविता)

मेरा  दोस्त प्रांशु गौड़ जिससे मै प्रभावित होकर अपने जीवन की प्रथम कविता  दिनाक ५ अगस्त २००१ को  लिखी "पतंग" और प्रभात खबर ने उसे प्रकाशित किया।
मुझे उस समय ये पढ़ कर काफी ख़ुशी हुई की प्रभात खबर की बाकी सभी कविताओं की प्रतियोगिता में मुझे मतलब मेरी "पतंग" को सर्वोश्रेस्ट कविता के रूप में चुना गया।
मै इस कविता को यथावत पोस्ट कर रहा हु । 


पतंग 

दूर ऊँची, अन्नंत सीमा के 
आकाश में 
सम्राटो सी 
विचारण करती 
विंदास
किसी भी प्रतिरोध रहित 
निश्चिंत 
उल्लासों में 
बादलो से आँख मिचौली खेलती 
कभी ऊपर 
कभी निचे 
आगे 
अभी पीछे 
अपनी मस्ती में मगन 
कभी न खत्म होने वाली दूरियों को 
पाटने की आकांक्षा लिए 
मेरा "मन" 
पतंग जिसकी दूसरी छोर
किसी की इच्छा एवं 
धागों में कैद है 
मै भी कैद हु 
किसी सीमाओं के धागों में 
अपनी रुढ़िवादी सामाजिक विचारधरा में 
अपने स्वार्थ सिद्धि की अभिलाषा में 
आर्थिक एवं पारिवारिक
 उलझनों  में,
और फिर वापस आ जाते है 
किसी जंगल नुमा धरती पर 
अपने ही जैसे 
पतंगबाजो से 
काटे जाने पर 
हत्ते से । 

-विनय कुमार हलवाई 


शुक्रवार, 23 मार्च 2012

होली प्रीति सम्मलेन बड़ा बाज़ार

होली प्रीति सम्मलेन बड़ा बाज़ार शाखा 

मध्यशिया समाज का बैनर 
 अखिल भारतीय मध्यशिया समाज पच्छिम बंगाल होली प्रीति सम्मलेन बड़ा बाज़ार  की कुछ झलक फोटो में ।
अखिल भारतीय मध्यशिया समाज पच्छिम बंगाल,कोल्कता, बड़ाबाज़ार शाखा  के सदस्यगन 

अखिल भारतीय मध्यशिया समाज पच्छिम बंगाल होली प्रीति सम्मलेन बड़ा बाज़ार शाखा में महिलाये सदस्यों की स्वागत करती हुई ।

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 समाज में  सभी आने वाले आगंतुको को अबीर लगा कर सवागत करती हुई 
 मध्यशिया समाज, बड़ाबाजार शाखा द्वारा आयोजित  रंगा-रंग कार्यक्रम में रोमांचित युवतीगन ।
 बच्चे बड़े सभी आनंद को उपभोग करते हुए ।
 कतार से बैठी महिलाये अपनी सीट पहले से ही सुनियोजित कर ली थी ताकी रंगा - रंग कार्यकर्म में कोई परेशानी न हो।
 रंगा- रंग कार्यकर्म की सुरुआत मशहूर भजन गायक  से शुरू हुई, जिन्होंने सुरुआत में ही समां को बाँध लिया और लोग ध्यानमग्न हो गए ।
 कुछ बुजुर्ग और यूवक सदस्यगन अपने ढंग से आनंद का लुत्फ़ लेते हुए । 












झूम बराबर झूम 
 आर्यन हलवाई बिनानी भवन में होली प्रीति सम्मलेन के दौरान, जहा समारोह हो रही थी।
होली प्रीति सम्मलेन,बिनानी भवन,बड़ाबाजार,कोल्कता