Akhil bhartiya madhyadeshiya vaishya shabha लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Akhil bhartiya madhyadeshiya vaishya shabha लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 8 जुलाई 2023

संगठन में रचनात्मक कार्य नही सिर्फ नाम का

 दोस्तो, मैं काफी सालो बाद फिर से अपने इस ब्लॉग पर आया हूँ या कह ले इसे खोज निकाला हु। तो आइए आज कुछ बिचार विमर्श हो जाये।

दोस्तो, एवं गुरुजनों आप सभी का एक बार फिर से अभिनंदन करते हुए आज मैं समाज के संगठनों के बारे में कुछ लिखना चाहूंगा, अक्सर मैंने देखा है कि लोग संगठन बनाते समय काफी एक्टिव और दुरुस्त लगते हैं जैसे कि उनमें अपने समाज के लोगो की सारी तकलीफ़ और परेशानी को कुछ ही दिन में दूर कर देंगे..! पर होता वही है एक ढाक के तीन पात...!मुझे लगता है कि मेरे जैसे सोचने वालो की संख्या मेरे अनुमान से कही ज्यादा होगी।

कारण यह है कि जब भी मैं किसी संगठन की ग्रुप में देखता हूँ तो मुझे दोषारोपण और इल्ज़ाम के लंबी फेहरिस्त नज़र आती है और कुछ दिन काम के बाद संगठन के लीडर और सदस्यगण का जोश ठंडा पर जाता है,यह बात आप सभी को भी पता है, हम सभी ने कई बार कारण खोजने की प्रयास भी किये होंगे पर नतीजा? मुझे लगता है कि कुछ भी नहीं! धीरे धीरे संगठन की आवाज़ दबने लगती है फिर कही लुप्त हो जाती है, हा यदा कदा किसी समारोह के उपलक्ष्य में बरसाती मेढकों की तरह  टर्र टर्र की आवाजें जरूर आती है, पर हक़ीक़त में इसका कोई दूरगामी प्रभाव नही देखा जाता है, हा यह हो सकता है कि देश मे कुछ जगह संगठन अच्छी और रचनात्मक कार्य भी कर रहे हो, पर दोस्तो फ़िलहाल तो इसकी जानकारी मुझे तो नहीं है आप लोगो को अगर है तो कृपया जरूर बताएं। तो आइए थोड़ा हम लोग थोड़ा सकरात्मक हो कर संगठन के बारे में विमर्श करे।


 कैसे लोग हो संगठन में


संगठन सही से नही चलने के पचासों कारण हो सकते हैं, इसकी जानकारी मुझसे ज्यादा आप सभी को होगी, लेकिन कोई संगठन को ब्यवस्तित ढंग से चलाने के लिए मुझे लगता है कि पूरी तरह समर्पण सहित और अहंकार रहित ब्यक्ति की जरूरत होती है जो अपनो के छोटी छोटी हमलो से आहत हुए बिना साथ ही बिना प्रसिद्धि पाने की आकांक्षा लिए जो अपने समाज के लिए कार्य करे।

दोस्तो, मेरा मानना है कि संगठन बड़ा हो या छोटा, उत्तरदायित्व छोटी हो या बड़ी हर स्थिति में सही इंसान का होना ज्यादा मायने रखता अब इस मानदंड में अगर कोई इंसान काम करे तो समाज की उत्थान हो सकती है।

तो आइए हम सभी थोड़ी इसकी समीक्षा और विमर्श करे।

 

प्रभावशाली लोग


दोस्तो, मुझे लगता है कि समाज में प्रभावशाली लोग हमेशा ही कई मामलों में बेहतर सकते हैं हालांकि यह कतई जरूरी नहीं हैं फिर भी जिनकी अपनी समाज और मोहल्ले में अच्छी पहचान के साथ साथ अगर अच्छी शाख भी हो तो ऐसे लोगो के कई काम उनके कहने मात्र से ही हो जाते हैं, लेकिन अक्सर देखा गया है कि ऐसे लोग दो धारी तलवार की तरह होते हैं, जिससे संगठन को फायदे के साथ साथ कई बार नुकसान भी उठाना पड़ता है।

पर फ़िर भी मुझे लगता है कि अगर प्रभाव शाली लोग संगठन के शर्तो में आने और काम करने के लिए तैयार हो तो उसे प्राथमिकता जरूर देनी चाहिए ..कहावत है न कि मरा हुआ हांथी भी सवा लाख होता है।


शैक्षणिक योग्यता


दोस्तो यह तो आप सभी जरूर मानते होंगे कि आज के इस युग में अगर संगठन के लीडर पढ़े लिखे हो तो कई काम वो अपनी उस योग्यता के दम पर ही कर या करवा सकता है। साथ ही सरकारी निर्देश और जानकारी को समझने के लिए चुनौती भी नही रहती,आज के इस कंप्यूटर युग में शायद ही कोई सरकारी या गैर सरकारी संस्था हो जहा लोगो को ब्यक्तिगत रूप से पहुँचना अनिवार्य होता है (सिवाय कुछ कामो को छोड़ कर)। अगर लीडर पढ़ा लिखा और तजुर्बेदार है तो संगठन की बहुत सारी काम वो बैठे बैठे कर सकता है या करवा सकता है। इसके अलावा किसी भी महत्वपूर्ण स्थान जैसे हॉस्पिटल,थाना, डी एम आफिस, और नेताओं से अपने और अपने लोगो के लिए अधिकार मांगना या अधिकार के लिए लड़ना आसान हो जाता है।


बहिर्मुखी और सेवा भाव मे सहज और स्वाभाविक दिलचस्पी


दोस्तो मुझे लगता है कि संगठन के अच्छा लीडर में यह एक  महत्वपूर्ण पॉइंट है,अंतर्मुखी लोग अपनी और संगठन के दूसरे लोगो की समस्या को सहज भाव से अभिब्यक्त नही कर पाते जो कि सबसे महत्वपूर्ण गुण है। लीडर अगर बहिर्मुखी हो तो अपनी इच्छा, ज्ञान, संबाद को बेहतर ढंग से अभिब्यक्त कर पाता है जिसका सीधा फायदा अपने संगठन पर पड़ता है।


सौ बात की एक बात


दोस्तो ऊपर दिए हुए गुण रहते हुए भी सब कुछ बेकार हो सकता है मतलब ये सभी गुण किसी काम के नही अगर बंदे में अहंकार या ईगो हो..! 

मुझे लगता है कि यही एक ऐसा अवगुण है जो सारी खूबियां को मटियामेट कर देता है। मुझे लगता है कि इस बात आप सभी सहमत भी होंगे, क्योंकि आज लगभग हर संगठन में ईगो और अहंकार की लड़ाई चल रही है कही खुल्लमखुल्ला तो कही दवे दवे होशियारी से, दोस्तो आज हर कोई खुद को दूसरे से बेहतर समझता है, कोई किसी से इस मामले में समझौता नही करना चाहता और मेरी जानकारी में संगठन का न चलने के पीछे सबसे बड़ा वज़ह यही है।

लेकिन मैंने यह कोई नायाब बात नही कही यह बात हर किसी को मालूम है ..! तो फ़िर क्या..?

आज शायद हम सभी मे भारतीय संस्कार की जरूरत को बेहतर समझ सकते हैं, और यह भी की हमारे बुजुर्ग संस्कार की मापदंड को इतना महत्व क्यों देते थे हमारी सारी धार्मिक ग्रंथ (गीता, रामायण इत्यादि)5000 सालो से इस संस्कार की गुणवक्ता को समझा रहे हैं जो कि अब धीरे धीरे अपनी उपस्थिति के लिए संघर्ष कर रहा है। 

दोस्तो मैं यह लिख कर स्वयं को मुक्त करने के उपाधि नही लेना चाह रहा हूँ पर आज के यह एक गंभीर मुद्दा जरूर है जिसके बारे में हम सभी को गंभीरता से सोचना होगा।





सोमवार, 16 जनवरी 2012

दहेज़ कैसे रोके ?



दहेज़ कैसे रोके ?
प्रांतीय महिला मंच, पच्छिम बंगाल 

दहेज़ का साधारण अर्थ है जो दिल को दहला दे वही दहेज़ है । दहेज़ के प्रतिबन्ध  के विषय में हम चाहे जितना भी कह ले या क़ानून बना ले लेकिन यथार्त जीवन में इसका नितांत अभाव ही दीखता है । जब तक पूर्णरुपेंन सामाजिक जागृति नहीं आती,दहेज़ का बहिस्कार असंभव ही रहेगा। क्या दहेज़ के कारण होने वाले हर गुनाह को क़ानून के समक्ष लाया जा सका है ? क्या दहेज़ के हर गुनाहागार को उचित दंड दिया जा सका है ? निर्मम हत्या, शारीरिक एवं मानसिक उत्पीडन करना दहेज़ लोभीयो के लिए मात्र एक खेलवाड़ है । हमारे पूर्वजो ने जिस सदउद्देश्य को लेकर कन्यादान के साथ यथाशक्ति विदाई देना शुरू किया आज उसी का विकृत रूप दहेज़ है ।
आज पारिवारिक सम्पन्नता के आधार पर वर-वधु का मूल्यांकन किया जा रहा है। सरकारी नौकरी का महत्व दहेज़ के साथ जडित होता जा रहा है। यही कारण है कि व्यवसाय पर नौकरी हावी होता जा रहा है। समाज में आर्थिक दृष्टी से कमजोर उच्चशिक्षित युवाओं कि कमी नहीं है, अगर उन्हें उचित सुबिधा दी जाए तो वे निःसंदेह प्रगति कर सकेगे, लेकिन कन्या पक्ष तो इस पर बिना विचारे ही उन्हें अनदेखा कर जाता है। ऐसी स्तिथि में अगर हम दहेज़ का रोना रोते है तो गलती तो हमारी है ही क्यों कि परोक्ष रूप से हम दहेज़ को ही प्रोत्साहित करते है। यह जानते हुए भी कि हम जो कुछ कर रहे है वह उचित नहीं- फिर भी आखे मूंदे हम उसी और बड़ रहे है - क्या यह हमारा सामाजिक और चारित्रिक पतन नहीं ? क्या हमारा भविष्य घोर अंधकारमय नहीं ?दिनों दिन यह अन्धकार गहराया जा रहा है  और इस अन्धकार में कितनी कन्याये कहा खो जायेगी , कहा नहीं  जा सकता। तो आइये, दहेज़ के प्रचंड वेग को रोकने के लिए हम अभी से यथा संभव प्रयास करे:-



  1. दहेज़ के विरोध में जागरूक अविभावको को आगे आना होगा जिनकी कथनी और करनी में सामंजस्य हो, सिर्फ दिखवा ना हो ।
  2. शिक्षित वर्ग के युवक-युवतियों को दहेज़ के विरुद्ध क्रान्ति लाना होगा ।  उनका नारा हो "न दहेज़ लेंगे, ना दहेज़ देंगे, ना खुद लेंगे, ना लेने देंगे ।
  3. विवाहिक रिस्तो के लिए जातिगत उपवर्ग को एक सूत्र में पिरोना होगा ताकि वर-वधु तलासने में सहूलियत हो सके ।
  4. सामूहिक विवाह को बढ़ावा देना होगा । इसके लिए जातिगत एवं सामाजिक संगठनो को आगे आना होगा ।
  5. दहेज़ विरोधी समावेश एवं वैवाहिक परिचय में केवल लडकियों को ही नहीं बल्कि लड़के को भी समाज के सामने लाये ।
  6. दिखावा एवं फिजूल खर्ची को रोकना होगा । रश्मो में सादगी होनी चाहिए ।
  7. दहेज़ ना लेने वाले परिवार का सामाजिक स्वागत किया जाए । समाज के गणमान्य व्यक्ति यदि यह आदर्श उपस्थित करे तो इसका अधिक प्रभाव पड़ेगा ।
  8. सिर्फ सम्पन्नता और सरकारी नौकरी पर ही विचार न करे बल्कि चरित्र और प्रतिभा पर विचार करते हुए शिक्षित युवको को प्रोत्साहित करे ।
  9. "नारी शिक्षा" का महत्व बहुत जरुरी है तभी महिलाओं के भावनाओं में परिवर्तन आ सकेगा ।सास-बहु का रिश्ता माँ-बेटी के रिश्ते में बदल सकेगा ।
  10. दहेज़ उन्मूलन के लिए प्रत्येक वर्ग , प्रत्येक समाज,चाहे वो किसी भी जाती के क्यों ना हो उन्हें जागृत होना पड़ेगा । किसी एक जाती विशेष को दहेज़ मुक्त करना संभव नहीं होगा जबतक पूरा समाज इसका विरोध नहीं  करेगा । 
  11.  
वक्त रहते जो संभल न पाए, नहीं दिया जो ध्यान ,
तो डोली के संग देना होगा , अर्थी का सामान ।
                                                                                                        







राज्य शाखा पश्चिम बंगाल 
ऑफिस :- १/२/१, डॉ. धीरेन सेन सारणी,(हर्तुकी बगान लेन), कोल्कता -६      
पंजीकृत संख्या :-s /२७६१३/९५ 
समाज दर्पण (प्रकाशित अंक नवम्बर २०११)
---------------------------------------------------------------------------------------------------सम्पादकीय 


यह सत्य है कि साहित्य समाज का दर्पण है, अतः जब हम 'समाज दर्पण ' की बात करते है तब हमारा सीधा संपर्क उस समाज के साहित्य से होता है. दर्पण तो हमे केवल उन्ही अंशो को दर्शाता है जो उसके समक्ष आता है किन्तु उसके पिछले भाग की सच्चाई हमारे समक्ष नहीं आती, इसके लिए पिछले भाग के तरफ भी एक और दर्पण की आवश्यकता पड़ती है, तभी हम वास्तविक सच्चाई तक पहुच पाते है.


अत: ये आवश्यक है क़ि केवल अपनी उपलब्धियों को ही दर्शाया नहीं जाए बल्कि उन अंशो को भी दर्शाया जाए जहा हमारी त्रुटिया एबम कमजोरिया है और जिसे हमें सुधारने क़ि आवश्कता  है. हमें निर्भीक होकर समाज दर्पण में अपनी समाज क़ि आर्थिक,सामाजिक, राजनैतिक, शैक्षिक एवं अन्यान पहलुओ को सामने लाकर उसकी उन्नति के लिये सोचना होगा. 
समाज दर्पण क़ि इस नवीनीकरण में हमने निर्णय लिया है क़ि छात्र -छात्राओ के लिए शिक्षा मूलक एवं रूचि सम्मत विषयो का समावेश किया जाए.
उनमे रचनात्मक प्रतिभा का सृजन किया जाये. कविता, लेख, कहानी, एवं प्रतियोगिता के माध्यम से उनके शिक्षा का विकाश किया जाये. इसी प्रकार 'नारी जगत' के लिए भी बिशेष स्थान रहेगा जहा उनकी समस्याये एवं उनकी रचनाये प्रकाशित क़ि जाएँगी. वैश्य समाज के विकाश के लिए हम प्रतिभाशाली एवं शिक्षित वर्ग का सादर अभिनन्दन करेंगे, उनकी रचनाये एवं सुझाव को प्रकाशित कर समाज के सामने लाने का प्रयास करेंगे. आप क़ि वैवाहिक समस्याओ एवं विवाहयोग्य युवको एवं कन्याओ क़ी सूची यथा संभव हम हर अंक में प्रकाशित करेंगे,अतः आप अपना बायोडाटा हमे 
अवश्य भेजे जिसे निशुल्क प्रकाशित किया जाएगा.


'समाज दर्पण' प्रतिवर्ष मार्च,जून, सितम्बर एवं दिसम्बर माह में प्रकाशित होगा. प्रति तीन महीनो में संस्था द्वारा संपन्न कार्य कर्मो एवं भविष्य क़ी योजनाये इस में प्रकाशित क़ी जाएँगी. नवीनीकरण का यह हमारा प्रयास आपके समक्ष है. हम स्वीकार करते है कि अभी इसमें बहुत सुधार की  आवश्कता है. फिलहाल हमारे सामने रचनाओ का अभाव है, लेकिन हमे आशा है कि अगले अंक से हम इसे बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत कर सकेंगे, प्रकाशन की आर्थिक कठिनाइयों को दूर करने के लिए कृपया आप आगे आये और बिज्ञापन देने का कष्ट करे. समाज दर्पण में सभी स्वजातियो का हार्दिक स्वागत है चाहे वे लेखक हो, पाठक हो, बिज्ञापनदाता हो या सलाहकार.आप सभी हमारा आमंत्रण स्वीकार करे और समाज दर्पण को एक नया रूप देकर इसे विकाश की शिखर तक ले चले.
                                                                 धन्यवाद !
आपका 
नन्दलाल साव 
प्रधान संपादक 



प्रांतीय महामंत्री के कलम से 

सभी स्वजातीय बंधुओ को प्रणाम, बुगुर्गो को चरण स्पर्श माताओ को प्रणाम, बहनों को अभय दान, अनुजो को शुभाशीष. बर्तमान मंत्री मंडल के देख रेख में सभा पुनः पूरी मर्यादा के साथ विकाश के पथ  पर अग्रसर हो गई है. संगठन सर्वोपरि है. संगठन की मर्यादा कायम रखना परिवार की मर्यादा कायम रखने के बराबर है. परिवार में जैसे अभिभावक वर्ग और निर्भरशील वर्ग एक दुसरे को मर्यादा देते हुए अनुशासित जीवन जीते है, ठीक उसी तरह सामाजिक संगठन में हर वर्ग को एक दुसरे के साथ इज्जत से, तालमेल, बनाकर एक दुसरे का हौसला बढ़ाते हुए आगे बढ़ना चाहिए.

खेलकूद आयोजन २०११   :- कोई भी देश या समाज अपनी यूवा शक्ति पर नाज करता है. हमें भी अपने यूवा सदस्यों और भाइयो पर नाज करना चाहिए. इसके लिए जरुरत है उनके अंदर की प्रतिभा को जगाना और उनकी जिज्ञासा को शांत करना.इस वर्ष के आरम्भ में ही मंत्रिमंडल के प्रयास से "प्रथम आल बंगाल स्वजातीय क्रिकेट टूर्नामेंट" प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. उद्देश्य सिर्फ यह पहचान करना था की हमारे यूवा सक्ति कितनी ताकतवर है 
और कितना प्रतिवावान? अति आश्चर्ज की बात यह रही कि हमारे पीछे सचमुच एक बड़ी यूवाशक्ति पूरी प्रतिभा के साथ खड़ी है लेकिन हमें तनिक भी इसका अंदाजा नहीं था कि हमारे अनुज अच्छे खिलाड़ी है और साथ ही अपनी ताकत का पर्दर्शन करने की पूरी क्षमता रखते है. सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि खिलाडियों ने ' खेल को खेल कि भावना' के तहत खेला और अपने प्रतिद्वंदियों को पूरा सम्मान दिया. उक्त आयोजन को जिन कार्यकर्ताओं ने दिवा रात्रि  मेहनत करके सफल बनाया उनमे सर्वो परि है सर्वश्री रतन लालशाव, श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता, श्री विजय कुमार गुप्ता, श्री दिलीप साव, कुमार संजय गुप्ता, श्री कृष्ण गुप्ता, श्री स्यामल साहा श्री ध्रुव चाँद गुप्ता. मै सभा कि तरफ से सभी आयोजको को 'भारत ल्यूब इण्डसट्रीज' (श्री जगन्नाथ गुप्ता', बज बज ) नोर्थ जोन ' आर के प्लास्टिक ' (श्री काली प्रसाद साव,  बजबज) साउथ ज़ोन,"एजीप " (श्री रतन लाल साव, मानिकतल्ला ) ईस्ट ज़ोन, ' कुमार पेट्रोकेम ' ( कुमार संजय गुप्ता ,हावड़ा), वेस्ट ज़ोन, सहित सभी टीम मेनेजर, खिलाडियों एवं दर्शको को धन्यबाद देता हु, तथा वर्ष २०१२ में ८ जनवरी रबिवार को आयोजित होने वाले "द्वितीय आल बंगाल स्वजातीय  क्रिकेट टूर्नामेंट एवं वार्षिक खेलकूद " में भाग लेने के लिए अनुरोध करता हु. यह एक सुसंहत एवं स्वस्थ समाज निर्माण कि प्रकि या है और इसे जारी रखने एवं सफल बनाने का दाइत्व हम सबका है. 

स्वजातीय जनगणना :-


इस वर्ष के आरम्भ में उत्तर बंगाल स्थित सिलीगुड़ी एवं दार्जलिंग के क्षेत्रीय कार्यकर्ताओ मूलत: पूर्व राष्ट्रीय यूवा प्रभारी श्री प्रेमचंद साव एवं उनके सहयोगी सदस्यों के प्रयास से तथा प्रांतीय सलाहकार  समिति सदस्य श्री रतन लाल साव,प्रांतीय उपाध्यक्ष श्री सुभाष चंद गुप्ता, पूर्व महामंत्री श्री विजय कुमार गुप्ता के सहयोग से तत्कालीन सरकारी पिछड़ी जाति एवं जनजाति राज्य मंत्री श्री योगेश चन्द्र वर्मन को पत्र लिख कर अपने स्वजातीय समुदाय को 'कानू-हलवाई' के नाम से पच्छिम बंगाल राज्य की पिछड़ी जाति(OBC ) की सूचि में दर्ज कराने  की  मांग की गई ताकि हमारे समाज के यूवक
 
यूवती शिक्षा  के क्षेत्र में,  सरकारी नौकरी प्राप्त करने  के क्षेत्र में एवं सरकारी कर्ज प्राप्त करके अपने व्यवासय को उन्नत बनाने के लिए पच्छिम बंग सरकार द्वारा दी गई आरक्षण की सुबिधा का लाभ उठा सके.  तत्कालीन माननीय  मंत्री मोहदय ने हमारे पत्र  को अनुमोदित  कर WEST BENGAL COMMISSION OF OTHER BACKWARD CLASSES  के पास भेज  दिया. कमीशन  ने हमारे संगठन को एक विशेष फॉर्म देकर उसके अनुरूप अपना बिस्तृत विवरण उनके संक्षय  प्रस्तुत   करने का निर्णय जारी किया. कमीशन  के सम्क्ष्य प्रस्तुत होने का प्रथम रास्ता स्वजातीय के माध्यम से निकलता है.अत; कार्यकारिणी की सभा में एक प्रस्ताव पारित करके एक "स्वजातीय जनगणना  कमीशन  -२०११" बनाया गया और जनगणना करने हेतु समस्त विषयो पर कार्य करने  का अधिकार दिया गया. स्वजातीय जनगणना कमीशन   के अध्क्ष्य श्री विजय कुमार गुप्ता (पूर्व महामंत्री) को बनाया गया है. जिनके सहयोग एवेम सलाह के लिए  दो  पूर्व  महामंत्री  श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता एवं  श्री रंजन  साह जी से अनुरोध किया  गया है. सभा की और से मेरा  पच्छिम  बंगाल राज्य में रहने वाले सभी स्वजातीय परिवार से करबद्ध अनुरोध है कि अपने अपने साखा पद अधिकारियो से संपर्क करके इसकी बिषद जानकारी ले तथा इस महत्त कार्यकर्म में सामिल हो कर इसे सफल बनाय. यह पुनीत कार्य अवश्य ही हमारे आने वाले पीढ़ी को विकाश के पथ पर अग्रसर होने में मदद करेगा.


स्वजातीय जनगणना क्यों ?

विजय कुमार गुप्ता (अध्यक्ष जनगणना कमीशन)

इस प्रगतिशील कम्पूटर के युग में आज भारत का प्रतेक जाति अपनी प्रगति करना चाहता है और अपने लिए हर सुविधा, हर अधिकार प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है । उनमे से बहुतो को सफलता मिली भी है और उन्हें पिछड़े वर्ग में सामिल भी कर लिया गया है, लेकिन जहा तक "कानू-हलवाई" का प्रश्न है हम इस दौड़ में बहुत पीछे है, यह कहना अतिशोक्ति नहीं होगा । हम क्यू पीछे है ? कितना पीछे है ? इसका कारण क्या है ? हमे ओ.बी.सी. का प्रमाण पत्र क्यों नहीं दिया जाता है ? हमे आरक्षण से दूर क्यों रखा गया है ? आखिर इसमें क्या कठिनाइया है ? ऐसे ढेरो प्रश्न उभर कर हमारे सामने आ जाते है । क्या आपकी आत्मा को उस वक़्त ठेस नहीं पहुचती जब आपका बच्चा शिक्षा और योग्ता में  
सिडूल कास्ट वाले से अधिक होते हुए भी सरकारी नौकरी से वंचित रह जाता है  और उससे जूनियर आरक्षण के मार्फ़त सरकारी नौकरी पा जाते है ।प्रश्न तो शिक्षा के क्षेत्र से ही शुरु हो जाता है । प्रश्न चाहे उच्च-शिक्षा के प्रवेश का हो या वित्तीय सहायता की, आखिर एसा क्यों ?आज जरुरत है की हम सोचे कि हम पीछे क्यों है, जो जातीय हमारा अनुशरण करती थी,हमसे बहुत पीछे थी, आज आरक्षण के बदौलत वे हम पर भारी है ।
आज "हलवाई" जाति को ओ.बी.सी. का दर्जा मिलने के बावजूद बंगाल सरकार उसे स्वीकार करने से कतराती है जब कि "माएरा" , "मोदक" हलवाई का पार्यवाची है । "माएरा" , "मोदक" हलवाई सिक्के के एक ही पहलू है, एक ही व्यवसाय से सम्बंधित है, फर्क है तो केवल भाषा का, एक बंगाली और गैर-बंगाली का । हलवाई जाति को ओ.बी.सी. का दर्जा तो मिला पर "ना" के बराबर। विहार में "कानू" को मान्यता मिली है लेकिन बंगाल में कानू कि कोई पहचान नहीं है । आज बंगाल में "हलवाई" वर्ग को ओ.बी.सी. को प्रमाण पत्र मिलना असंभव ही काहा जाएगा । हकीकत यह है कि गैर-बंगाली को हलवाई के नाम पर प्रमाण पत्र देना सरकारी नीति के विरुद्ध है क्युकि इसमें ऐसे-ऐसे तथ्य  प्रमाण पत्र मांगे जाते है , जिन्हें एकत्रित करना प्राय: असम्भव  है। अगर किसी तरह जुटा भी
भी लिया तो उन पक्षपाती अधिकारियों के नुक्ता चिनो से बचना मुस्किल है । इने-गिने कुछ लोगो ने किसी तरह प्रमाण पत्र पाया भी है तो माएरा-मोदक के साथ हलवाई लिख कर। समस्या केवल यही रहती तो कोई विशेस बात न थी, यदि प्रमाण पत्र आसानी से मिल जाता । यहाँ तो बंगाल सरकार के अधिकांश अफसर संकुचित विचारधारा के मातहत गैर-बंगाली को ओ.बी.सी. कि मान्यता देना ही नहीं चाहते है । वे तो गैर बंगाली को बंगाल का निवासी मानते ही नहीं,विशेष प्रमाण पत्र देने पर दूसरा कारण बताते है कि हलवाई वर्ग गरीबी रेखा में आता ही नहीं । उनका मुख्या उद्देश्य तो आप को इतना परेशान करना है कि आप उबकर चुप बैठ जाए ।  
प्रश्न यह है कि जब किसी प्रकार हलवाई को ओ.बी.सी. का दर्जा मिल गया है तो फिर प्रमाण पत्र पाने में इतनी निराधार कठिनाइया क्यों है ?हमारी संस्था "अखिल भारतीय मध्यदेशीय वैश्य सभा (पच्छिम बंगाल) के पद अधिकारीयो एवं विशिस्ट अनुभवी व्यक्तियों ने इस बिषय पर पूरी खोज -बीन क़ी, हर मुमकिन सरकारी दफ्तर का चक्कर लगाया, इस विषय से सम्बंधित अफसरों का दरवाजा खटखटाया  तो जो बात सामने उभर कर आती है वह यह है कि हमें केवल एक ही रास्ता दिखाई पड़ता है -वह-है-अपनी स्वजातीय जनगणना का रिपोर्ट । हमें दिखाना होगा कि हलवाई वर्ग अब भी पिछड़ा हुआ है, अशिक्षित, गरीब व्यवसाइयो का वर्ग है जिसे अधिक से अधिक सरकारी सहायता कि जरुरत है अथ: पिछड़े वर्ग कि तरह ओ.बी.सी. की श्रेणी में मान्यताप्राप्त हलवाई को सहज ढंग से प्रमाण पत्र दिया जाए ।हमे जो रिपोर्ट पेश करना होगा उसमे दिखाना होगा कि हम सदा से पिछड़े हुए है , जब कि वे मानते है कि "हलवाई" में सभी पैसे वाले आमिर  व्यक्ति है । इन्हें ओ.बी.सी. कि कोई आवश्यकता नहीं ।
सबसे जटिल समस्या तो यह है कि हम अपनी जाती एक नहीं बताते । एक ही परिवार,एक ही वर्ग के लोग जिनकी मूल उत्पत्ति "कानू" से है, अपने को भिन्न -भिन्न जातिगत नामो से पुकारते है, यथा -मध्यदेसिया, कन्नोजिया ,करौंच, कांदु, कान्यकुब्ज,कान्हू, कंदोई, हलवाई, रौनिहार, भूंज इत्यादि और यही कारण है कि हमारी जनसँख्या विशाल होते हुए भी हम नगण्य है । आरक्षण के क्षेत्र  में अन्य जातियो  कि तुलना में हमारी जनसँख्या कम पड़ जाती है । अतएव आज इस बात की परम आवशयकता  है कि हम  जनगणना में अपनी जाती केवल "कानू -हलवाई" ही लिखवाय और आरक्षण कि मांग करे । अगर हम इस समय सचेस्ट नहीं होंगे तो फिर कभी भी हम आरक्षण  और ओ.बी.सी. का लाभ नहीं पा सकेंगे । हम इन लाभों से वंचित थे, वंचित है, और वंचित ही रह जायेंगे ।
इन सारे परिस्थितियों से निपटने के  लिए हमारे अनुभवी एवं विशिस्ट लोग जी-जान से प्रयास कर रहे है ताकि ओ.बी.सी. का प्रमाण पत्र आसानी से मिल सके इसके लिए हमारा भी फर्ज बनता है कि हम भी उन्हें हर संभव सहयोग करे और स्वजातीय जनगणना में हर प्रश्न का सही उत्तर देकर इस कर्मक्षेत्र में अपनी उपस्तिथि जाहिर करे । जहा-जहा भी हमारे स्वजातीय बंधू निवास करते है आप उनका परिचय हमारे जनगणना करने वाले लोगो से करवाए और उनका परिचय हमारी संस्था से तभी हमारे सम्मिलित प्रयास द्वारा यह आन्दोलन सफल होगा । समय-समय पर पत्रिका द्वारा आपको जानकारी मिलती रहेगी और आपको कोई विशेस जानकारी हो हमें भेजे । हम उसका स्वागत करेगे ।
सबकुछ आप का सहयोग पर निर्भर है, "स्वजातीय जनगणना" पर आप का एवं आप के बच्चो का भविष्य निर्भर है -चाहे नौकरी हो या शिक्षा, राजनैतिक क्षेत्र हो -सामाजिक क्षेत्र हो अथवा आर्थिक । हर जगह आप तभी प्रगति कर सकेंगे जब कि आपकी "स्वजातीय जनगणना" का एक ही आधार हो गा -"कानू-हलवाई" ताकि आप एक विशाल जनसँख्या दिखा सके । जनगणना द्वारा आपको अपनी पहचान बनानी होगी और यह काम केवल आप ही कर सकते है । जब हमारी जाती के प्रतेक व्यक्ति का हाथ एक साथ ऊपर उठेगा और कदम एक साथ आगे बढेगे तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती । हमे ओ.बी.सी. कि मान्यता मिली है तो हमें उसका प्रमाण पत्र भी देना होगा । यही हमारा संघर्ष है, हमारा लक्ष्य है । यह कैसा परिहास है कि हमारी कई पीढ़ी बंगाल में बीत गई फिर भी हम नान-बंगाली है- हमारा कोई अधिकार नहीं ।

 अन्याय के विरुद्ध हमने संघर्ष का पथ चुन लिया है, कदम बढ़ा दिया है तो हमारे कदम आगे बढ़ाते ही रहेंगे जब तक लक्ष्य नहीं मिल जाता । आप हमारे साथ आगे आये और "स्वजातीय जनगणना" का कार्य पूरा करने में हमारी सहायता कर ताकि हमारे बच्चो का भविष्य अन्धकार के गर्त से निकल कर प्रकाश के किरणों का स्पर्श कर सके और हम एक सुनहरे भविष्य कि आधारशिला रख सके ।

-विजय कुमार गुप्ता