शनिवार, 8 जुलाई 2023

संगठन में रचनात्मक कार्य नही सिर्फ नाम का

 दोस्तो, मैं काफी सालो बाद फिर से अपने इस ब्लॉग पर आया हूँ या कह ले इसे खोज निकाला हु। तो आइए आज कुछ बिचार विमर्श हो जाये।

दोस्तो, एवं गुरुजनों आप सभी का एक बार फिर से अभिनंदन करते हुए आज मैं समाज के संगठनों के बारे में कुछ लिखना चाहूंगा, अक्सर मैंने देखा है कि लोग संगठन बनाते समय काफी एक्टिव और दुरुस्त लगते हैं जैसे कि उनमें अपने समाज के लोगो की सारी तकलीफ़ और परेशानी को कुछ ही दिन में दूर कर देंगे..! पर होता वही है एक ढाक के तीन पात...!मुझे लगता है कि मेरे जैसे सोचने वालो की संख्या मेरे अनुमान से कही ज्यादा होगी।

कारण यह है कि जब भी मैं किसी संगठन की ग्रुप में देखता हूँ तो मुझे दोषारोपण और इल्ज़ाम के लंबी फेहरिस्त नज़र आती है और कुछ दिन काम के बाद संगठन के लीडर और सदस्यगण का जोश ठंडा पर जाता है,यह बात आप सभी को भी पता है, हम सभी ने कई बार कारण खोजने की प्रयास भी किये होंगे पर नतीजा? मुझे लगता है कि कुछ भी नहीं! धीरे धीरे संगठन की आवाज़ दबने लगती है फिर कही लुप्त हो जाती है, हा यदा कदा किसी समारोह के उपलक्ष्य में बरसाती मेढकों की तरह  टर्र टर्र की आवाजें जरूर आती है, पर हक़ीक़त में इसका कोई दूरगामी प्रभाव नही देखा जाता है, हा यह हो सकता है कि देश मे कुछ जगह संगठन अच्छी और रचनात्मक कार्य भी कर रहे हो, पर दोस्तो फ़िलहाल तो इसकी जानकारी मुझे तो नहीं है आप लोगो को अगर है तो कृपया जरूर बताएं। तो आइए थोड़ा हम लोग थोड़ा सकरात्मक हो कर संगठन के बारे में विमर्श करे।


 कैसे लोग हो संगठन में


संगठन सही से नही चलने के पचासों कारण हो सकते हैं, इसकी जानकारी मुझसे ज्यादा आप सभी को होगी, लेकिन कोई संगठन को ब्यवस्तित ढंग से चलाने के लिए मुझे लगता है कि पूरी तरह समर्पण सहित और अहंकार रहित ब्यक्ति की जरूरत होती है जो अपनो के छोटी छोटी हमलो से आहत हुए बिना साथ ही बिना प्रसिद्धि पाने की आकांक्षा लिए जो अपने समाज के लिए कार्य करे।

दोस्तो, मेरा मानना है कि संगठन बड़ा हो या छोटा, उत्तरदायित्व छोटी हो या बड़ी हर स्थिति में सही इंसान का होना ज्यादा मायने रखता अब इस मानदंड में अगर कोई इंसान काम करे तो समाज की उत्थान हो सकती है।

तो आइए हम सभी थोड़ी इसकी समीक्षा और विमर्श करे।

 

प्रभावशाली लोग


दोस्तो, मुझे लगता है कि समाज में प्रभावशाली लोग हमेशा ही कई मामलों में बेहतर सकते हैं हालांकि यह कतई जरूरी नहीं हैं फिर भी जिनकी अपनी समाज और मोहल्ले में अच्छी पहचान के साथ साथ अगर अच्छी शाख भी हो तो ऐसे लोगो के कई काम उनके कहने मात्र से ही हो जाते हैं, लेकिन अक्सर देखा गया है कि ऐसे लोग दो धारी तलवार की तरह होते हैं, जिससे संगठन को फायदे के साथ साथ कई बार नुकसान भी उठाना पड़ता है।

पर फ़िर भी मुझे लगता है कि अगर प्रभाव शाली लोग संगठन के शर्तो में आने और काम करने के लिए तैयार हो तो उसे प्राथमिकता जरूर देनी चाहिए ..कहावत है न कि मरा हुआ हांथी भी सवा लाख होता है।


शैक्षणिक योग्यता


दोस्तो यह तो आप सभी जरूर मानते होंगे कि आज के इस युग में अगर संगठन के लीडर पढ़े लिखे हो तो कई काम वो अपनी उस योग्यता के दम पर ही कर या करवा सकता है। साथ ही सरकारी निर्देश और जानकारी को समझने के लिए चुनौती भी नही रहती,आज के इस कंप्यूटर युग में शायद ही कोई सरकारी या गैर सरकारी संस्था हो जहा लोगो को ब्यक्तिगत रूप से पहुँचना अनिवार्य होता है (सिवाय कुछ कामो को छोड़ कर)। अगर लीडर पढ़ा लिखा और तजुर्बेदार है तो संगठन की बहुत सारी काम वो बैठे बैठे कर सकता है या करवा सकता है। इसके अलावा किसी भी महत्वपूर्ण स्थान जैसे हॉस्पिटल,थाना, डी एम आफिस, और नेताओं से अपने और अपने लोगो के लिए अधिकार मांगना या अधिकार के लिए लड़ना आसान हो जाता है।


बहिर्मुखी और सेवा भाव मे सहज और स्वाभाविक दिलचस्पी


दोस्तो मुझे लगता है कि संगठन के अच्छा लीडर में यह एक  महत्वपूर्ण पॉइंट है,अंतर्मुखी लोग अपनी और संगठन के दूसरे लोगो की समस्या को सहज भाव से अभिब्यक्त नही कर पाते जो कि सबसे महत्वपूर्ण गुण है। लीडर अगर बहिर्मुखी हो तो अपनी इच्छा, ज्ञान, संबाद को बेहतर ढंग से अभिब्यक्त कर पाता है जिसका सीधा फायदा अपने संगठन पर पड़ता है।


सौ बात की एक बात


दोस्तो ऊपर दिए हुए गुण रहते हुए भी सब कुछ बेकार हो सकता है मतलब ये सभी गुण किसी काम के नही अगर बंदे में अहंकार या ईगो हो..! 

मुझे लगता है कि यही एक ऐसा अवगुण है जो सारी खूबियां को मटियामेट कर देता है। मुझे लगता है कि इस बात आप सभी सहमत भी होंगे, क्योंकि आज लगभग हर संगठन में ईगो और अहंकार की लड़ाई चल रही है कही खुल्लमखुल्ला तो कही दवे दवे होशियारी से, दोस्तो आज हर कोई खुद को दूसरे से बेहतर समझता है, कोई किसी से इस मामले में समझौता नही करना चाहता और मेरी जानकारी में संगठन का न चलने के पीछे सबसे बड़ा वज़ह यही है।

लेकिन मैंने यह कोई नायाब बात नही कही यह बात हर किसी को मालूम है ..! तो फ़िर क्या..?

आज शायद हम सभी मे भारतीय संस्कार की जरूरत को बेहतर समझ सकते हैं, और यह भी की हमारे बुजुर्ग संस्कार की मापदंड को इतना महत्व क्यों देते थे हमारी सारी धार्मिक ग्रंथ (गीता, रामायण इत्यादि)5000 सालो से इस संस्कार की गुणवक्ता को समझा रहे हैं जो कि अब धीरे धीरे अपनी उपस्थिति के लिए संघर्ष कर रहा है। 

दोस्तो मैं यह लिख कर स्वयं को मुक्त करने के उपाधि नही लेना चाह रहा हूँ पर आज के यह एक गंभीर मुद्दा जरूर है जिसके बारे में हम सभी को गंभीरता से सोचना होगा।