मेरा दोस्त प्रांशु गौड़ जिससे मै प्रभावित होकर अपने जीवन की प्रथम कविता दिनाक ५ अगस्त २००१ को लिखी "पतंग" और प्रभात खबर ने उसे प्रकाशित किया।
मुझे उस समय ये पढ़ कर काफी ख़ुशी हुई की प्रभात खबर की बाकी सभी कविताओं की प्रतियोगिता में मुझे मतलब मेरी "पतंग" को सर्वोश्रेस्ट कविता के रूप में चुना गया।
मै इस कविता को यथावत पोस्ट कर रहा हु ।
मुझे उस समय ये पढ़ कर काफी ख़ुशी हुई की प्रभात खबर की बाकी सभी कविताओं की प्रतियोगिता में मुझे मतलब मेरी "पतंग" को सर्वोश्रेस्ट कविता के रूप में चुना गया।
मै इस कविता को यथावत पोस्ट कर रहा हु ।
पतंग
दूर ऊँची, अन्नंत सीमा के
आकाश में
सम्राटो सी
विचारण करती
विंदास
किसी भी प्रतिरोध रहित
निश्चिंत
उल्लासों में
बादलो से आँख मिचौली खेलती
कभी ऊपर
कभी निचे
आगे
अभी पीछे
अपनी मस्ती में मगन
कभी न खत्म होने वाली दूरियों को
पाटने की आकांक्षा लिए
मेरा "मन"
पतंग जिसकी दूसरी छोर
किसी की इच्छा एवं
धागों में कैद है
मै भी कैद हु
किसी सीमाओं के धागों में
अपनी रुढ़िवादी सामाजिक विचारधरा में
अपने स्वार्थ सिद्धि की अभिलाषा में
आर्थिक एवं पारिवारिक
उलझनों में,
और फिर वापस आ जाते है
किसी जंगल नुमा धरती पर
अपने ही जैसे
पतंगबाजो से
काटे जाने पर
हत्ते से ।
-विनय कुमार हलवाई
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