प्यासा कुआँ
प्रकृति की एक कहानी, जो है सालों पुरानी.
प्यास बुझाता था एक कुआँ, न प्यास कभी उसने जानी थी.
जो भी लाया अपनी बाल्टी, बदले में पूरा जल भर देती थी.
प्यासे की प्यास बुझाता, खुशहाली का पर्याय था वह.
बचपन की उन यादों को, सबको आज सुनाता हूँ.
जैसे गई जलसतह नीचे, पानी वैसे हुआ ख़त्म.
प्यास बुझाने को प्यासा, वह कुआँ हो चला ख़तम.
इंतज़ार किया महीनो सालो, उसमे अब न पानी था.
प्रकृति ने किया ऐसा कहर, हैंडपंप भी उसे ना चिढ़ा पाती.
उसकी सिसकी किसी ने न जानी, जीवन ठहर जाता है तब.
प्यास बुझाता था एक कुआँ, अब गहरा कूड़ादान है वह.
-आकाश गुप्ता (श्री आकाश जी फिलहाल फ़िलहाल ISRO.( Indian Space Research Organisation), में Sr.Assistant (Administration) in कार्यरत है।)
यह कविता मेरे मित्र आकाश (जिनसे फसबूक में बात चीत हुई है ) उन्होंने भेजी है, यह कविता उनके छोटे भाई श्री विकाश गुप्ता द्वारा लिखी हुई है श्री आकाश जी फिलहाल फ़िलहाल ISRO.( Indian Space Research Organisation), में Sr.Assistant (Administration) in कार्यरत है।
खुला आकाश
जीत का जश्न है, जिन्दगी में वो मुकाम आया है.
चाहते पड़ गई हैं कम, और चेहरे पर मुस्कान छाया है.
ना आगे कोई मंजिलें हैं, ना रास्तों का है पता.
नज़रों के सामने बस, एक गुबार का साया है.
अगर जद है दिल के झरोखों में, है तुझे नयें रास्तो की तलाश.
सच्ची कोशिशो ही करती है, हर मुश्किल आसान.
चाहत की कोई इन्तहां नहीं होती.
हासिल करने की जिद नहीं पड़ती कभी छोटी.
ऐ दिल तू भी ये बात समझ ले.
एक मंजील से पूरी दुनिया नहीं चलती.
करना है आगाज तुझे, है चट्टानों का साथ तुझे.
हरा भरा और रोशन कर दे, वो चाहते हैं जो बुझे बुझे.
अपनी चाहत अगर पंख हैं तेरे, गैरों की चाहत है परबाज.
उड़ चल तू इस नील गगन में, सारा जग तेरा आकाश.